कविता - वन्देमातरम फांसी के फंदों पर भारी था vndematram
कविता वन्देमातरम फांसी के फंदों पर भारी था राष्ट्रधर्म की ज्वाला बन कर, धधक उठी चिंगारी थी, वन्देमातरम वन्देमातरम वन्देमातरम फांसी के फंदों पर भारी था। शब्द बृह्म के जयघोष से अंग्रेजों की सत्ता हारी थी , आजादी के महामंत्र की अमृत वर्षा आज भी सब पर भारी है। राष्ट्रधर्म की ज्वाला बन कर धधक उठी चिंगारी थी, वन्देमातरम वन्देमातरम वन्देमातरम फांसी के फंदों पर भारी था। ===1=== क्रांति-वीर नें उँगली थामी, जनता भी हुंकार उठी , मातृ भूमि से उठा जनपथ, स्वाभिमान की शंखनाद सुनी । मां के चरणों में सर्वस्व रखा, भय का नाम न भारी था, अग्नि-पथों पर चलने वालों ने, इतिहास में बलिदान लिखा था । ===2=== छाती तान सभी बढ़ चले थे, लक्ष्य स्वतंत्रता के गंतव्य को , अमर शहीदों ने रक्त से मातृभूमि को तिलक लगाया था। धर्म नहीं, मजहब नहीं, भाषा नहीं! सब एक सूत्र में चले थे, वन्देमातरम के जयकारों ने,युग युग को आजादी का दीप जलाया था। ===3=== गूँज रहा है अब भी हर कोने में, त्याग-तपस्या और बलिदान ! एकता की वह शक्ति जिसने किया हर संकट का निदान । नये भारत की राहों में कर लें हम संकल्प नया, स्वाधीनता का पावन अमृत युगों युगों...