राजनीति के राजघाट पर
🎵 गीत — “राजनीति के घाट” 🎵 (मुखड़ा) राजनीति के राजघाट पर, नेतन की भई भीड़, सारे मेवा खात है, सारे पियत है खीर। लोक कहे, भ्रष्टता से फूटी अपनी तकदीर, तंत्र कहें, सम्पन्नता से सात पीढ़ी की दूर हुई पीर ! (अंतरा 1) झंडा उठे, नारे लगें, वादा सबको मिलेगी खुशहाली का , कुर्सी जब मिल जाए तब, इंतजाम होगा अपनी खुशहाली का, भाषण में सपने लाखों, मन में अपनी तीर, राजनीति के राजघाट पर, नेतन की भई भीड़।। (अंतरा 2) गाँव की गलियों में अब सन्नाटा छायो, नेताजी शहर में बंगला नया बनायो। जनता पूछे — कहाँ गया वो नसीब, कहें जनाब — ये सब तो भाग्य की ही लिखीर।। (मुखड़ा दोहराव) राजनीति के घाट भई नेतन की भीड़, कोई मेवा खात है, कोई पियत है खीर। जनता कहती फूटी अपनी तकदीर, नेता कहत — सात पीढ़ी की दूर हुई पीर।। (अंतरा 3) चुनाव आए फिर से, ढोल नगाड़े बाजें, वो ही झूठी बातें, वही पुराने साज़ें। जनता फिर भी आशा में रखे अपनी धीर, कभी तो बदलेगी किस्मत की तस्वीर।। (समापन) राजनीति का मेला यूँही चलता जाए, जनता के सपने हर मौसम में बिक जाए। कभी तो आए सच का नगीना वीर, तब मुस्काए भारत, मिटे जनता की पीर।। --